Wednesday, 22 July 2015

हम-तुम


आज भी वही गुलाबी सी ठण्ड है। लगता है आज भी बर्फ गिरेगी तभी तो देखो झील भी सुनसान सी पड़ी है,एक भी शिकारा मनही रहा। तभी इरफ़ान की बातो को कटते हुए रौशनी ने कहा,जाके अलमारी में से शॉल निकाल लाओ..बहुत मुश्किल से पैरों को गरम किया है और एक चाय का प्याला भी लेते आना। इस कडाके की ठण्ड में छज्जे पे बैठ के चाय की चुस्कियां लेने का मज़ा ही कुछ और होता है। और इतना कह के वो मिस्टर फ़ारूकी की बेटी फातिमा को अपने मंगेतर के साथ बर्फ में खेलते हुए देखती हुई गहरी सोच में डूब जाती है। तभी पीछे से इरफ़ान ने रौशनी को शॉल उढाते हुए कहा,"कितने साल नीट गए कभी हम-तुम भी य़ू ही शरारते किया करते थे। क्या दिन थे वो भी ...हम दोनों के किस्से हमेशा ही चर्चे में रहा करते थे। याद है मेने तुम्हे कितनी हिम्मत जूटा कर भरी महफ़िल में प्रोपोस किया था। तभी रौशनी ने जोर से हस्ते हुए कहा- हाँ याद है किस तरह हमारी पहली मुलाकात पे बिना चीनी की चाय पी गए थे तुम। वो भी क्या दिन थे!! ढेर सारी बातें, ढेर सारी मुलाकातें ,वो कॉलेज का कैफेटेरिया और हम-तुम।

.........साल गुज़रे, दिन गुज़रे ...हम अजनबी से दोस्त बने, दोस्त से प्रेमी, प्रेमी से एक दुसरे के हमदर्द,हमदर्द से पति पत्नी ,और पति पत्नी से माँ-बाप बन गये। 
हाँ मुझे आज भी याद है अथर्व को बुखार आने की वजह से आप रात भर सोये नहीं थे, अपने मुह के निवाले के साथ साथ अपने हिस्से की हर एक चीज़ बच्चो को सवारने में लगा दी आपने। कभी भी अथर्व और नूर को किसी भी चीज़ की कमी नहीं महसूस होने दी।
आज 42 साल हो गए हैं उस वक़्त को गुज़रे,कल भी हम साथ थे और आज भी साथ हैं बस फर्क इतना हैं की कल हम अपने बच्चो को छोड़ देते थे ताकि वो चलना सीख सके और आज उन्होंने हमे छोड़ दिया ताकि हम खुद के लिए सहारा ढूढ सके।


....अरे ओ अंकल-आंटी चलो खाना खा लो वरना 8 बजे के बाद कुछ नि मिलेगा किसी को।

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