Friday 10 April 2015

गुज़ारिश



आज घर में एक अलग ही ख़ुशी का माहौल था। माँ,दादी,पापा सब बहुत खुश थे शायद क्यूंकि मै इस दुनिया में आने वाली थी। घर में रिश्तेदारों की भीड़ लगी हुई थी मानो में कोई बहुत बड़ी हस्ती हूँ। कानपूर वाली नानी ,माँ को एक क बाद एक हिदायत देती जा रही थी और मुझे मजबूरन सब सुन्ना पड़ रहा था। लेकिन फिर एक अजीब ससी उत्सुकता भी हो रही थी। मै सोच रही थी मेरे आने से पहले मेरा इतना ख़याल रखा जा रहा है तो मेरे आने क बाद तो मेरे ठाठ ही होंगे।

आज मै बहुत खुश हूँ, आज मुझे माँ क गर्भ में आये हुए एक महिना हो गया है और अगले ही महीने के पहले ही हफ्ते में मेरा दिमाग और रीड़ की  हड्डी का विकास भी शुरू हो जायेगा । और उसके बाद अगले ही हफ्ते मेरे छीटे छोटे हाथ और छोटी छोटी आँखें और शरीर के बाकी हिस्से भी विकसित हो जायेंगे। माँ हर रोज़ मुझे मंदिर ले जाती है और साथ ही साथ ढेर सारी बातें भी करती है।

आज माँ अपना सारा काम जल्दी ख़त्म करने में लगी है क्यूंकि मुझे, माँ-पापा के साथ डॉक्टर के पास जाना है । सुबह ही मैंने दादी को पापा से कहते सुना था -" तीन महिन्र हो गये हैं , डॉक्टर से जांच करवा ल बहु की।" जब हम डॉक्टर के पास गये तो मैंने देखा मै टी.वी फ्पर आ रही हूँ और माँ-पापा भी मुझे इस मुकाम पर देख कर बहुत खुश हो रहे थे पर फिर मुझे पता चला की माँ कइ सोनोग्राफी हो रही टीही। जांच के बाद मैंने डॉक्टर को कहते हुए सुना की घबराने कइ बात नही है कोई सब कुछ बिलकुल ठीक है।

आज मुझे पाँच महीने हो रहे है। और वक़्त क साथ साथ में बहुत शैतान भी होती जा रही हूँ। मई एक ही जगह जब पड़े पड़े ऊबने लगती तो माँ को बार बार लात मार के परेशान करती हूँ। आज भगवान्  ने मुझे वो चीज़े दे दी जिसका मुझे बड़े होने पर बहुत ख़याल रखना पड़ेगा । जी हाँ आज मेरी भौऒ के साथ साथ नाखून भी निकल आये हैं। माँ ने तो दिन भर खट्टा खिला खिला के मुह का स्वाद ही बिगाड़ दिया है और इसलिए कभी कभी मुझे अँगूठे से ही काम चलन पड़ता है।

सुबह का वक़्त था , माँ मेरे साथ कामरे में अकेली बैठी थी और न जाने क्यू बहुत रो रही थी ,कारण क्या था कुछ समझ नहीं पा रही थी मै। तभी दादी ,माँ के पास आई और कहने लगी -"बेटी होगी तो ज़िन्दगी भर का बोझ रहेगा,दहेज़ देना पड़ेगा।इससे बेहतर बहू तू गर्भपात करवा ले ।" ये सुनते ही मई छटपटा उठी, अगर कुछ कह पाती तो माँ से कहती -" माँ मुझे आने दे इस दुनिया में,दादी को समझाये की मै जीना चाहती हूँ ।

इतना सब सुनने के बाद भी मुझे अपने माँ-पापा पर पूरा भरोसा था । आखिर उन्ही का तो अंश थी मै। 
लेकिन उस वक़्त मेरी इस एक गुज़ारिश को दफना कर मेरी तमाम गुजारिशो का गला घोट दिया गया।
कहते है -
"यत्र नारी पूज्यन्ते , रमन्ते तत्र देवता।"
लेकिन आज जिस समाज में हम जी रहे है वहाँ नारी का सम्मान तो बहुत दूर की बात है ,उसे पैदा तक नही होने दिया जाता। आज भी हर सा  भारत में लाखो भ्रूण हत्या होती है सिर्फ इसलिए क्यूंकि वो एक कडकी होती है ।व्यंग तो ये है की इतना होने के बावजूद हम खुद को प्रगतिशील देश कहते है। आज भी लडकियों की संख्या लडको के मुकाबले बहुत ही कम है खासतौर से पंजाब ,हरयाणा और जम्मू कश्मीर जैसी जगहों पर। आश्चर्य की बात तो ये है की ऐसे घिनौने अओराध को हमरे देश का पढ़ा लिखा नागरिक भी करता है। इस अपराध के लिए पी.सी.पी.ए न. डी .टी कानून भी है जिसके मुतबिक भ्रूण हत्या और लिंग की जांच करने वाले लोगो के लिए कड़ी सजा लिखी है। लेकिन हमारे देश में तो सिर्फ कानून किताबो में दीमक के लिए होते है। हमे बहुत कुछ करने की ज़रूरत है अपने लिए,देश क लिए। हर बार हम मुह फेर के नहीं मुड़ सकते वरना ये करवा यूँ ही चलता ही रहेगा हमेशा।