Monday 27 July 2015

रील से रियल तक



रील से रियल तक

"वो कागज़ की कश्ती, वो बारिश का पानी"
"ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो"
"भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी"
"मगर लौटा दो बचपन का सावन"
"वो कागज़..........................."
जगजीत सिंह जी की ये ग़ज़ल "बचपन" के उस खूबसूरत दौर को बेहद सहेजता से बयाँ करती है। सच ही है, क्या बेपरवाह सा बचपन था वो... सोने के लिए माँ की गोद ,लाड के लिए पापा का कन्धा, अपना कहने को एक तीन पहियों वाली साइकिल और खाने को स्कूल से चुराई हुई चाक और मिट्टी के दिए ही काफी होते थे। कुछ न हो कर भी सब कुछ था हमारे पास और अब आलम वइसे-वर्सा है। किसे पता था ये नन्हे नन्हें पैर जो सिर्फ़ कभी मिट्टी में सना करते थे , आज जिम्मेदारियों का बोझ संभालेंगे। ये तो अब जा के जाना है की ज़िन्दगी इतनी आसान नहीं, हर पल एक नया इम्तेहान और एक नई करवट लेती है ज़िन्दगी। ज़िन्दगी का रास्ता तो सीधा है लकिन सफ़र में ढेरों मोड़ और उस हर मोड़ पर एक आयना ।
सही ही कहा है किसी ने "ज़िन्दगी एक रंगमंच है"........जहाँ हर चेहरे को अपना किरदार निभाना है, किसी को भीड़ में हँसना है तो किसी को अकेले में रोना है।
"आज दिल करता है की, फिर से बच्चा बन जाऊ"
"जिम्मेदारियों का बोझ पटक, फिर मिटटी में सन जाऊ"
"वो गुडियों की शादी पर लड़ना झगड़ना "
"वो झूलो से गिरना और गिरकर संभालना"
"ज़िन्दगी बेईमान नहीं , हर किसी को सबक देती है"
"खुद ख़त्म हो जाने पर भी जान ले लेती है"
"ये ज़िन्दगी हर दिन एक नयी जीत एक नयी हार है"
फिर भी हम कहते है उनसे "ज़िन्दगी गुलज़ार है"....

Wednesday 22 July 2015

हम-तुम


आज भी वही गुलाबी सी ठण्ड है। लगता है आज भी बर्फ गिरेगी तभी तो देखो झील भी सुनसान सी पड़ी है,एक भी शिकारा मनही रहा। तभी इरफ़ान की बातो को कटते हुए रौशनी ने कहा,जाके अलमारी में से शॉल निकाल लाओ..बहुत मुश्किल से पैरों को गरम किया है और एक चाय का प्याला भी लेते आना। इस कडाके की ठण्ड में छज्जे पे बैठ के चाय की चुस्कियां लेने का मज़ा ही कुछ और होता है। और इतना कह के वो मिस्टर फ़ारूकी की बेटी फातिमा को अपने मंगेतर के साथ बर्फ में खेलते हुए देखती हुई गहरी सोच में डूब जाती है। तभी पीछे से इरफ़ान ने रौशनी को शॉल उढाते हुए कहा,"कितने साल नीट गए कभी हम-तुम भी य़ू ही शरारते किया करते थे। क्या दिन थे वो भी ...हम दोनों के किस्से हमेशा ही चर्चे में रहा करते थे। याद है मेने तुम्हे कितनी हिम्मत जूटा कर भरी महफ़िल में प्रोपोस किया था। तभी रौशनी ने जोर से हस्ते हुए कहा- हाँ याद है किस तरह हमारी पहली मुलाकात पे बिना चीनी की चाय पी गए थे तुम। वो भी क्या दिन थे!! ढेर सारी बातें, ढेर सारी मुलाकातें ,वो कॉलेज का कैफेटेरिया और हम-तुम।

.........साल गुज़रे, दिन गुज़रे ...हम अजनबी से दोस्त बने, दोस्त से प्रेमी, प्रेमी से एक दुसरे के हमदर्द,हमदर्द से पति पत्नी ,और पति पत्नी से माँ-बाप बन गये। 
हाँ मुझे आज भी याद है अथर्व को बुखार आने की वजह से आप रात भर सोये नहीं थे, अपने मुह के निवाले के साथ साथ अपने हिस्से की हर एक चीज़ बच्चो को सवारने में लगा दी आपने। कभी भी अथर्व और नूर को किसी भी चीज़ की कमी नहीं महसूस होने दी।
आज 42 साल हो गए हैं उस वक़्त को गुज़रे,कल भी हम साथ थे और आज भी साथ हैं बस फर्क इतना हैं की कल हम अपने बच्चो को छोड़ देते थे ताकि वो चलना सीख सके और आज उन्होंने हमे छोड़ दिया ताकि हम खुद के लिए सहारा ढूढ सके।


....अरे ओ अंकल-आंटी चलो खाना खा लो वरना 8 बजे के बाद कुछ नि मिलेगा किसी को।

Friday 10 April 2015

गुज़ारिश



आज घर में एक अलग ही ख़ुशी का माहौल था। माँ,दादी,पापा सब बहुत खुश थे शायद क्यूंकि मै इस दुनिया में आने वाली थी। घर में रिश्तेदारों की भीड़ लगी हुई थी मानो में कोई बहुत बड़ी हस्ती हूँ। कानपूर वाली नानी ,माँ को एक क बाद एक हिदायत देती जा रही थी और मुझे मजबूरन सब सुन्ना पड़ रहा था। लेकिन फिर एक अजीब ससी उत्सुकता भी हो रही थी। मै सोच रही थी मेरे आने से पहले मेरा इतना ख़याल रखा जा रहा है तो मेरे आने क बाद तो मेरे ठाठ ही होंगे।

आज मै बहुत खुश हूँ, आज मुझे माँ क गर्भ में आये हुए एक महिना हो गया है और अगले ही महीने के पहले ही हफ्ते में मेरा दिमाग और रीड़ की  हड्डी का विकास भी शुरू हो जायेगा । और उसके बाद अगले ही हफ्ते मेरे छीटे छोटे हाथ और छोटी छोटी आँखें और शरीर के बाकी हिस्से भी विकसित हो जायेंगे। माँ हर रोज़ मुझे मंदिर ले जाती है और साथ ही साथ ढेर सारी बातें भी करती है।

आज माँ अपना सारा काम जल्दी ख़त्म करने में लगी है क्यूंकि मुझे, माँ-पापा के साथ डॉक्टर के पास जाना है । सुबह ही मैंने दादी को पापा से कहते सुना था -" तीन महिन्र हो गये हैं , डॉक्टर से जांच करवा ल बहु की।" जब हम डॉक्टर के पास गये तो मैंने देखा मै टी.वी फ्पर आ रही हूँ और माँ-पापा भी मुझे इस मुकाम पर देख कर बहुत खुश हो रहे थे पर फिर मुझे पता चला की माँ कइ सोनोग्राफी हो रही टीही। जांच के बाद मैंने डॉक्टर को कहते हुए सुना की घबराने कइ बात नही है कोई सब कुछ बिलकुल ठीक है।

आज मुझे पाँच महीने हो रहे है। और वक़्त क साथ साथ में बहुत शैतान भी होती जा रही हूँ। मई एक ही जगह जब पड़े पड़े ऊबने लगती तो माँ को बार बार लात मार के परेशान करती हूँ। आज भगवान्  ने मुझे वो चीज़े दे दी जिसका मुझे बड़े होने पर बहुत ख़याल रखना पड़ेगा । जी हाँ आज मेरी भौऒ के साथ साथ नाखून भी निकल आये हैं। माँ ने तो दिन भर खट्टा खिला खिला के मुह का स्वाद ही बिगाड़ दिया है और इसलिए कभी कभी मुझे अँगूठे से ही काम चलन पड़ता है।

सुबह का वक़्त था , माँ मेरे साथ कामरे में अकेली बैठी थी और न जाने क्यू बहुत रो रही थी ,कारण क्या था कुछ समझ नहीं पा रही थी मै। तभी दादी ,माँ के पास आई और कहने लगी -"बेटी होगी तो ज़िन्दगी भर का बोझ रहेगा,दहेज़ देना पड़ेगा।इससे बेहतर बहू तू गर्भपात करवा ले ।" ये सुनते ही मई छटपटा उठी, अगर कुछ कह पाती तो माँ से कहती -" माँ मुझे आने दे इस दुनिया में,दादी को समझाये की मै जीना चाहती हूँ ।

इतना सब सुनने के बाद भी मुझे अपने माँ-पापा पर पूरा भरोसा था । आखिर उन्ही का तो अंश थी मै। 
लेकिन उस वक़्त मेरी इस एक गुज़ारिश को दफना कर मेरी तमाम गुजारिशो का गला घोट दिया गया।
कहते है -
"यत्र नारी पूज्यन्ते , रमन्ते तत्र देवता।"
लेकिन आज जिस समाज में हम जी रहे है वहाँ नारी का सम्मान तो बहुत दूर की बात है ,उसे पैदा तक नही होने दिया जाता। आज भी हर सा  भारत में लाखो भ्रूण हत्या होती है सिर्फ इसलिए क्यूंकि वो एक कडकी होती है ।व्यंग तो ये है की इतना होने के बावजूद हम खुद को प्रगतिशील देश कहते है। आज भी लडकियों की संख्या लडको के मुकाबले बहुत ही कम है खासतौर से पंजाब ,हरयाणा और जम्मू कश्मीर जैसी जगहों पर। आश्चर्य की बात तो ये है की ऐसे घिनौने अओराध को हमरे देश का पढ़ा लिखा नागरिक भी करता है। इस अपराध के लिए पी.सी.पी.ए न. डी .टी कानून भी है जिसके मुतबिक भ्रूण हत्या और लिंग की जांच करने वाले लोगो के लिए कड़ी सजा लिखी है। लेकिन हमारे देश में तो सिर्फ कानून किताबो में दीमक के लिए होते है। हमे बहुत कुछ करने की ज़रूरत है अपने लिए,देश क लिए। हर बार हम मुह फेर के नहीं मुड़ सकते वरना ये करवा यूँ ही चलता ही रहेगा हमेशा।

Saturday 21 February 2015

I LOVE YOU

 

Its 9:30pm here in Chicago, i am returning from my workplace and could see the roads and malls painted red. And something that is adding cherry on the cake is this wonderful snowfall that reminds me of my hometown Shimla. I could see the couples walking down the Southom lane and some of them preparing to tie knots the next day causing the churches booked full.This post valentine's evening is compelling me to let the tears flow through my eyes. Yes ofcourse, i am missing my babe .Though she is not here with me on this very special occasion but her memories of last valentine's day are still cherished.
Well its 10:10pm and i am home now. But before entering i should check my letterbox that i am doing continously from past few days after returning home. And finally today i got her letter there with a box wrapped in glittery red paper. It seemed like this was all that i needed. I took the letter and the box, and rushed straight to my room without even putting off my cigarette bud, that irked my landlady the most.
I quickly removed my shoes, thrown my bag aside and opened the letter which quoted;-

My dear love,

                     Its been a quite long time that i am writing you. I know writing letters are quite outdated but as you know i am a novice of things like skype and web chatting. But don't worry i'll catch things soon.
Well a very happy valentine day baby. I miss you even badly with every gone day. I know we are in a long distance relationship but  they say distance is only in our head if love is true. This is my first valentine's without you. Our house seems to be just a silent godown for furniture, sometimes disturbed by wind chimes. I have sent a lantern that we used to blow up in the sky every year on valentine's day. Whenever i miss you, i go to your room and lie on your bed where i have put your favourite bedsheet.
Well i think, now i should say bye to you with lots of love and care.

HAPPY VALENTINE'S DAY son...study well!!

Your mumma.